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मैं एक पुत्र हूँ, एक कर्ज़ में हमेशा रहता हूँ।
माता पिता की सेवा में ही लीन रहता हूँ।।
मैं एक भाई हूँ, सदा आचरण में रहना जानता हूँ।
बहन की विदाई का दायित्व भी भलीभाँति जानता हूँ।।
मैं एक पति हूँ, पत्नी की ज़िम्मेदारी उठाना जानता हूँ।
गृहस्थी को सवांरने में सारी ताक़त लगाना जानता हूँ।।
मैं एक पिता हूँ,बच्चों का पालन हँसकर करता हूँ।
रोज़ एक किश्त चुकाता हूँ रोज़ एक कर्ज़ में फंसता हूँ।।
दर्द बहुत पैरों में होता है , आँखें भी बोझिल सी लगती हैं।
लेकिन दायित्वों के चँगुल से ज़िन्दगी कहाँ निकलती है।।
कई सपने अधूरे रह गए मेरे फिर भी मुस्कुरा देता हूँ।
परिवार खुश रहे इसलिए हर शिकन चेहरे से मिटा देता हूँ।।
माता निःसंदेह परिवार की आत्मा है और शक्ति प्रबल है।
लेकिन पिता से उसका सिंदूर है और वही उसका संबल है।।
पिता है तो बच्चों के हर दिन रात सुनहरे हैं।
पिता है तो बाज़ार के सारे खिलौने मेरे हैं।।
पुत्र , भाई , पति , पिता ये चारों भी थक जाते हैं।
अपने पे खर्च करने से पहले ही इनके हाथ रुक जाते हैं।।
चलो इन्हें भी जीवन में कुछ आनंद की अनुभूति दें।
इतना किया इन्होंने हमारे लिए कुछ तो इन्हें वापस कर दें।।
इतना किया इन्होंने हमारे लिए कुछ तो इन्हें वापस कर दे।।
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