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खाकी लहूलुहान हुयी है पूरा अमला जख्मी है
आज देश सेवा करने का इनका सपना जख्मी है
आज सियासी हिजड़ेपन से वीर बहादुर हार गए
खादी की साजिश से खाकी वाले नाहर हार गए
सत्ता ने हुश्कार दिया है कुत्ते के कुछ झुंडों को
सरकारी संरक्षण हासिल था मथुरा के गुंडों को
राजमहल से इस जंगल का रस्ता अगर कटा होता
बदमाशों की लाशो से पूरा ही बाग़ पटा होता
हाँ मायूस कर दिया इनको राजनीति के फेरों ने
पहनी वरना नहीं चूड़ियाँ खाकी वाले शेरों ने
दस घण्टे का टाइम दो वर्दी का क़र्ज़ उतारेंगे
इन गुंडों को घर से इनके खीँच खींच कर मारेंगे
या फिर ये कानून व्यवस्था भी गुंडों के हाथ करो
हमको अपने घर जाने दो , रेप देश के साथ करो
पर जब तक तन पर खाकी है इतना मत मजबूर करो
बिल्ली को चूहा दौड़ा ले ये मत आप हुजूर करो
डीजीपी सर कुछ तो बोलो मरे आपके बेटे है
नेताओं के बेटे तो एसी कमरों में लेटे है
आगे आओ मुकुल द्विवेदी जी की लाश बुलाती है
डीजीपी सर हर शहीद की टूटी सांस बुलाती है
सत्ता के अंधे गलियारों को सर आज तिलांजलि दो
हत्यारों का खून अंजुली में भर कर श्रद्धांजलि दो
मुकुल और सन्तोष की बूढ़ी माताओं का पीर सुनो
चूड़ी की चटकन सुनलो इन बेवाओं की पीर सुनो
बेटों की सूनी आँखों की अब तो करुण पुकार सुनो
सपने देख रही बेटी के अंतस की चीत्कार सुनो
आज पिता की वृद्धावस्था वाली लाठी टूट गयी
बहनों के हाथों से राखी बिना बंधे ही छूट गयी
सीएम साहब नौजवान हो यौवन की सौगन्ध तुम्हे
सावन आने को है रक्षाबन्धन की सौगन्ध तुम्हे
एक बार तुम चमक बढ़ा दो वर्दी जड़े सितारों की
बस गर्दन उतार लेने दो मथुरा के गद्दारों की
एक सवाल और तुमसे ये खाकी अमला पूछ रहा
लहू लहू में अंतर कैसा पूरा सूबा पूछ रहा
अगर शहीद जियाउलहक को जी भर कर सम्मान दिया
मथुरा के शहीद वीरों को क्यों मुट्ठी भर मान दिया
इस कवि के बागी तेवर को एक मोड़ यहां देदो
एक करोड़ वहां दे आये एक करोड़ यहाँ देदो
और चुनौती मेरी बागी कलम दे रही है
सूबे की सरकार तुम्हारा इम्तेहान ले रही है
चाहे जिसको कानपूर दो चाहे किसको झाँसी दो
लेकिन राम वृक्ष यादव को चौराहे पर फाँसी दो ।।
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