Jeet Ki Kalam
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सूखे से ग्रस्त हमारे अन्नदाताओं ( किसानों ) के लिए नम आँखों से कुछ पंक्तियाँ :
ज़मीन जल चुकी है,बस आसमान बाकी है।
ए दरख़्तों अब तुम्हारा इम्तहान बाकी है।।
वो जो खेतों की मेड़ों पर उदास बैठें हैं।
उन्हीं की आँखों में अब तक ईमान बाकी है।।
बादलों अब तो बरस जाओ सूखी फसलों पर।
मकान गिरवी है मेरा ,और लगान बाकी है।।
हर कोई मस्त है बड़े शहरों की रौनकों में।
क्या कहीं हमारी भी कोई पहचान बाकी है।।
तोड़ दिया हमारा फौलाद सा हौसला सबने।
ना जाने इस शरीर में फिर भी क्यों जान बाकी है।।
लिखूंगा हर वो लफ्ज़ जो झकझोर दे आत्मा को।
इंसान को इंसान से मिलाने का अरमान बाकी है।।
न मरने दूँगा इंसानियत को यूँ ही मैं ज़माने में।
जब तक जीत की कलम में जान बाकी है।।
जब तक जीत की कलम में जान बाकी है।।
#JaiJawanJaiKisan
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